तेहरान की आज़ाद यूनिवर्सिटी के साइंस एंड रिसर्च कैंपस में एक छात्रा द्वारा कपड़े उतारने का वीडियो रविवार को सोशल मीडिया पर वायरल हो गया, जिससे व्यापक प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं। छात्रा के इस कदम को कई लोग ‘हिजाब पहनने की ज़बरदस्ती के खिलाफ प्रतिरोध’ का प्रतीक मान रहे हैं, जबकि विश्वविद्यालय प्रशासन ने उसे हिरासत में लेकर मानसिक स्वास्थ्य जांच के लिए अस्पताल भेज दिया है।
प्रतिरोध का प्रतीक
कई लोगों का मानना है कि इस छात्रा ने कपड़े उतारकर हिजाब के खिलाफ साहसी प्रतिरोध का संदेश दिया है। सोशल मीडिया पर उसे ‘रिसर्च साइंस गर्ल’ हैशटैग के तहत समर्थन मिल रहा है। उसके समर्थन में पोस्ट कर रहे लोग मानते हैं कि यह कदम ईरानी शासन के बढ़ते दमन के खिलाफ आवाज़ उठाने का प्रतीक है। लोगों का कहना है कि इस कदम ने ईरान में महिलाओं की आज़ादी के लिए संघर्षरत आवाज़ों को एक नया रूप दिया है। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, छात्रा ने कपड़े उतारते हुए अन्य छात्रों से कहा, “मैं तुम सबको बचाने आई हूँ,” जिससे उसकी मंशा स्पष्ट होती है कि उसने यह कदम समाज में बदलाव की उम्मीद से उठाया।
महिलाओं के प्रतिरोध की आवाज़: नर्गिस मोहम्मदी का समर्थन
शांति के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित नर्गिस मोहम्मदी, जो ईरान की इविन जेल में बंद हैं, ने भी इस छात्रा के समर्थन में अपने इंस्टाग्राम अकाउंट से एक संदेश साझा किया। उनके अकाउंट से कहा गया कि “महिलाओं को आज्ञा न मानने की क़ीमत चुकानी पड़ती है, लेकिन वे झुकती नहीं हैं।” मोहम्मदी का संदेश है कि इस छात्रा का विरोध का यह कदम ईरान में महिलाओं की पीड़ा, गुस्से, और विद्रोह का प्रतीक है।
अन्य हस्तियों का समर्थन
ईरानी अभिनेत्री कातायून रियाही और पेंटिया बहराम ने भी इस छात्रा का समर्थन अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर जताया है। ये दोनों अभिनेत्रियाँ पहले भी 2022 के हिजाब विरोधी प्रदर्शनों का समर्थन कर चुकी हैं, जब माहसा अमीनी की हिरासत में मौत के बाद ईरान में व्यापक प्रदर्शन हुए थे। इस घटना ने एक बार फिर ईरान में महिलाओं की स्थिति और शासन की दमनकारी नीतियों को उजागर किया है।
आलोचना और मानसिक स्वास्थ्य पर सवाल
अमेरिकी राजनीतिक टिप्पणीकार जैक्सन हिंकले ने इस छात्रा की तस्वीर साझा करते हुए इसे मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ा मामला बताया, जिसे आलोचना का सामना करना पड़ा। ईरानी मानवाधिकार कार्यकर्ता अज़ाम जानगरवी ने हिंकले को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि ईरान में महिलाओं को मानसिक रूप से बीमार ठहराकर उन्हें दबाने का प्रयास किया जाता है। जानगरवी ने अपना व्यक्तिगत अनुभव साझा करते हुए बताया कि कैसे उन्हें भी मानसिक रोगी बताने का प्रयास किया गया था ताकि विरोध की उनकी आवाज़ को दबाया जा सके। उन्होंने हिंकले को चुप रहने और ईरान की महिलाओं के संघर्ष को सम्मान देने की सलाह दी।
दबाव और मानसिक बीमारी का ठप्पा
ईरानी प्रशासन द्वारा महिलाओं को “मानसिक रूप से अस्थिर” बताना एक सामान्य रणनीति है जिससे उनका प्रतिरोध कमज़ोर पड़ जाए। जानगरवी ने अपने परिवार पर हुए दबाव का भी जिक्र किया और बताया कि कैसे प्रशासन द्वारा उन्हें मानसिक रूप से अस्वस्थ ठहराने का दबाव उन पर डाला गया था ताकि जेल से बाहर निकाला जा सके। उन्होंने यह भी कहा कि बहुत से परिवार अपने बच्चों को जेल से बचाने के लिए यह ठप्पा लगाने को मजबूर होते हैं।
विरोध की लहर और आगे की चुनौतियाँ
ईरान में महिलाओं के अधिकारों को लेकर लंबे समय से संघर्ष जारी है। 2022 के व्यापक प्रदर्शनों के बाद से हिजाब विरोध और महिलाओं की स्वतंत्रता के मुद्दे पर शासन के कड़े कदमों में इजाफा हुआ है। यह घटना इस बात का प्रतीक है कि ईरानी महिलाओं की आज़ादी की मांग एक लंबे और कठिन संघर्ष का हिस्सा है।
यह घटना न केवल ईरानी महिलाओं के लिए बल्कि दुनियाभर में महिला अधिकारों के प्रति संवेदनशील लोगों के लिए एक प्रेरणा बन चुकी है।