
शिरोमणि अकाली दल (SAD) के लिए एक बार फिर बड़ा राजनीतिक फैसला सामने आया है। अमृतसर में हुई बैठक में सुखबीर सिंह बादल को सर्वसम्मति से पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुन लिया गया है। सुखबीर बादल काफी समय से इस पद पर रहे हैं, लेकिन बीते साल नवंबर में उन्होंने अचानक इस्तीफा दे दिया था। अब एक बार फिर पार्टी ने उन्हें जिम्मेदारी सौंप दी है, हालांकि इसके साथ ही पार्टी के अंदरूनी मतभेद भी खुलकर सामने आ रहे हैं।
क्यों दिया था इस्तीफा?
पिछले साल 16 नवंबर को सुखबीर सिंह बादल ने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया था। यह फैसला तब आया जब पार्टी को लोकसभा चुनावों में अच्छा प्रदर्शन नहीं मिल पाया था। इसके बाद पार्टी के अंदर ही कुछ नेताओं ने उनके नेतृत्व पर सवाल उठाए और बगावत कर दी। लेकिन पार्टी की वर्किंग कमेटी ने उनका इस्तीफा उसी समय स्वीकार नहीं किया। आखिरकार जनवरी 2025 में इसे औपचारिक रूप से स्वीकार कर लिया गया।
बगावत की वजह से आई थी मुश्किलें
सुखबीर सिंह बादल के खिलाफ बगावत करने वाले नेताओं में प्रेम सिंह चंदूमाजरा, गुरप्रताप सिंह वडाला, बीबी जागीर कौर और सुखदेव सिंह ढींडसा जैसे बड़े नाम शामिल थे। इन नेताओं का आरोप था कि पार्टी अपने मूल सिद्धांतों से भटक रही है और नेतृत्व में बदलाव जरूरी है। यही कारण है कि पार्टी दो गुटों में बंटती दिखी।
अकाल तख्त की कार्रवाई
सुखबीर बादल और कुछ अन्य वरिष्ठ नेताओं को श्री अकाल तख्त साहिब ने ‘तनखाहिया’ घोषित किया था, जिसका मतलब होता है धार्मिक सजा के पात्र। इसके चलते उन्हें धार्मिक दंड भुगतना पड़ा। यह कदम इसलिए उठाया गया क्योंकि इन नेताओं पर धार्मिक नियमों का उल्लंघन करने का आरोप लगा था।
सदस्यता अभियान बना विवाद का कारण
अकाल तख्त साहिब ने जब नेताओं को सजा सुनाई, तब उन्होंने शिरोमणि अकाली दल में सदस्यता अभियान चलाने के लिए एक सात सदस्यीय कमेटी का गठन किया था। लेकिन सुखबीर बादल गुट ने उस कमेटी को मान्यता नहीं दी और खुद ही सदस्यता अभियान शुरू कर दिया। इसी के आधार पर पार्टी अध्यक्ष का चुनाव भी कराया गया।
बागी नेताओं का विरोध
बागी नेताओं का कहना है कि यह सदस्यता अभियान अकाल तख्त के आदेशों के खिलाफ है और इस चुनाव की कोई वैधता नहीं है। उनका दावा है कि मई में वे खुद से सदस्यता अभियान चलाएंगे और पार्टी को असली रास्ते पर लाने की कोशिश करेंगे।
अब आगे क्या?
सुखबीर बादल के फिर से अध्यक्ष बनने से पार्टी को एक बार फिर नेतृत्व मिला है, लेकिन अंदरूनी कलह अभी थमी नहीं है। बागी गुट की नाराजगी और अकाल तख्त से टकराव की स्थिति पार्टी के लिए चिंता का विषय बनी हुई है।
शिरोमणि अकाली दल के सामने इस समय दो बड़ी चुनौतियाँ हैं – एक तरफ संगठन को मजबूत करना और दूसरी तरफ बगावत को काबू में लाना। अब देखना यह है कि सुखबीर बादल इस नए कार्यकाल में पार्टी को एकजुट कर पाते हैं या नहीं। फिलहाल, पंजाब की राजनीति में एक बार फिर अकाली दल चर्चा में है और आने वाले समय में इसका असर चुनावी माहौल पर भी दिख सकता है।