सुप्रीम कोर्ट ने मुफ्त राशन वितरण पर केंद्र सरकार से पूछे कड़े सवाल
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को केंद्र सरकार द्वारा मुफ्त राशन वितरण को लेकर कड़ी टिप्पणी की। अदालत ने सवाल किया कि सरकार कब तक मुफ्त राशन बांटेगी और रोजगार के अवसर क्यों नहीं पैदा कर रही है। केंद्र ने अदालत को सूचित किया कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA), 2013 के तहत 81 करोड़ लोगों को मुफ्त या सब्सिडी वाला राशन दिया जा रहा है। इस पर अदालत ने टिप्पणी करते हुए कहा, “इसका मतलब है कि केवल करदाता ही इस योजना के दायरे से बाहर हैं।”
यह मामला मुख्य रूप से प्रवासी मजदूरों और असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों को राशन कार्ड प्रदान करने से जुड़ा है। सुप्रीम कोर्ट की बेंच, जिसमें जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस मनमोहन शामिल हैं, ई-श्रम पोर्टल पर पंजीकृत मजदूरों को मुफ्त राशन कार्ड देने से संबंधित याचिका पर सुनवाई कर रही थी।
क्या है मामला?
यह मामला प्रवासी मजदूरों और असंगठित क्षेत्र के मजदूरों को राशन कार्ड प्रदान करने से संबंधित है। एक गैर-सरकारी संगठन (NGO) की ओर से अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट में दलील दी कि ई-श्रम पोर्टल पर पंजीकृत सभी मजदूरों को मुफ्त राशन मुहैया कराने के लिए सरकार को निर्देश दिए जाएं।
सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने पहले 4 अक्टूबर को आदेश दिया था कि जो भी व्यक्ति राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA) के तहत राशन कार्ड के योग्य है और जिन्हें संबंधित राज्य सरकारों ने पहचान लिया है, उन्हें 19 नवंबर तक राशन कार्ड जारी किया जाए। केंद्र सरकार ने जवाब में कहा कि वह केवल 2013 के अधिनियम में दी गई बाध्यताओं के तहत ही राशन कार्ड जारी कर सकती है। इसके अलावा, वह कानून द्वारा निर्धारित सीमा से बाहर जाकर कार्ड जारी नहीं कर सकती।
जनगणना 2011 के आंकड़ों पर सवाल
9 दिसंबर को हुई सुनवाई के दौरान, याचिकाकर्ता के वकील प्रशांत भूषण ने तर्क दिया कि यदि 2021 में जनगणना करवाई जाती, तो प्रवासी मजदूरों की वास्तविक संख्या सामने आ जाती। उन्होंने कहा कि केंद्र अभी भी 2011 की जनगणना के आंकड़ों पर निर्भर है, जो वर्तमान समय में अप्रासंगिक हो चुके हैं।
इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केंद्र और राज्यों के बीच जिम्मेदारियों का विभाजन करना मुश्किल होगा। बेंच ने यह भी जोड़ा कि यह मामला केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के बीच समन्वय का है।
केंद्र का पक्ष
केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत को बताया कि मुफ्त राशन की योजना कोविड-19 महामारी के दौरान शुरू की गई थी। उस समय प्रवासी मजदूरों को राहत देने के लिए इस योजना को लागू किया गया था। हालांकि, सरकार अब 2013 के अधिनियम के तहत बंधी हुई है और कानूनी सीमा से बाहर जाकर कोई योजना नहीं चला सकती।
केंद्र ने यह भी कहा कि पीएम गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत, सरकार ने महामारी के दौरान जरूरतमंदों को मुफ्त राशन प्रदान किया। लेकिन यह योजना विशेष परिस्थितियों में शुरू की गई थी और इसे स्थायी रूप से लागू करना व्यावहारिक नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट की अगली सुनवाई
इस मामले की अगली सुनवाई अब 8 जनवरी को होगी। अदालत ने केंद्र सरकार से कहा कि वह यह सुनिश्चित करे कि सभी पात्र व्यक्तियों को राशन कार्ड प्रदान किया जाए और कोई भी जरूरतमंद व्यक्ति भूखा न रहे।
मुफ्त राशन वितरण पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी ने इस मुद्दे पर गंभीर चर्चा शुरू कर दी है। अदालत ने रोजगार सृजन और दीर्घकालिक समाधानों की आवश्यकता पर जोर दिया है। यह मामला सरकार के लिए एक बड़ा अवसर है कि वह जरूरतमंदों की मदद के साथ-साथ दीर्घकालिक विकास और आत्मनिर्भरता की दिशा में कदम उठाए।