सुप्रीम कोर्ट ने क्रेडिट कार्ड बिलों के भुगतान में देरी के मामले में बैंकों को बड़ी राहत देते हुए राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (NCDRC) के एक पुराने फैसले को रद्द कर दिया है। इस फैसले में NCDRC ने क्रेडिट कार्ड बिलों पर देरी से भुगतान करने वालों पर 30% सालाना ब्याज दर की सीमा तय की थी। सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय के बाद अब बैंक अपनी नीतियों के अनुसार ब्याज दरें तय कर सकेंगे।
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला 15 साल पुराना है, जब NCDRC ने अपने आदेश में कहा था कि यदि कोई ग्राहक क्रेडिट कार्ड बिल का समय पर भुगतान नहीं करता या न्यूनतम बकाया राशि जमा नहीं करता, तो बैंक 30% से अधिक ब्याज नहीं वसूल सकते। आयोग ने इस वसूली को ‘अनुचित व्यापार अभ्यास’ करार दिया था।
तीन प्रमुख बैंकों—स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक, सिटी बैंक और HSBC—ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। इन बैंकों का तर्क था कि ब्याज दरें तय करने का अधिकार भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के दायरे में आता है और आयोग को इसमें हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने NCDRC के फैसले को रद्द करते हुए कहा कि बैंकों को यह अधिकार होना चाहिए कि वे अपनी नीतियों के आधार पर ब्याज दर तय कर सकें। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि क्रेडिट कार्ड पर ब्याज दरें उन ग्राहकों पर लागू होती हैं जो समय पर भुगतान नहीं करते हैं, जबकि समय पर भुगतान करने वाले ग्राहकों को ब्याज-मुक्त अवधि और अन्य लाभ मिलते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बैंकों को ग्राहकों से वसूली के लिए अपनी नीतियां बनाने का पूरा हक है। यह निर्णय बैंकों की कार्यक्षमता और उनके व्यवसायिक हितों को ध्यान में रखते हुए लिया गया है।
भारतीय रिज़र्व बैंक की भूमिका
RBI ने इस मामले में अदालत को बताया कि वह बैंकों को “अत्यधिक ब्याज दर वसूलने से बचने” की सलाह देता है, लेकिन ब्याज दरों को सीधे तौर पर नियंत्रित नहीं करता। RBI का कहना है कि ब्याज दर तय करने की जिम्मेदारी बैंकों के बोर्ड की होती है।
फैसले का प्रभाव
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से बैंकों को क्रेडिट कार्ड ग्राहकों से ज्यादा ब्याज वसूलने का कानूनी आधार मिल गया है। यह कदम बैंकों के लिए राहत लेकर आया है, क्योंकि अब उन्हें अपनी नीतियां तय करने की स्वतंत्रता होगी। हालांकि, ग्राहकों के लिए यह फैसला वित्तीय दृष्टि से चुनौतीपूर्ण हो सकता है, खासकर उन लोगों के लिए जो अपने क्रेडिट कार्ड बिल का समय पर भुगतान नहीं कर पाते।
बैंकों को अब यह अधिकार होगा कि वे अपने वित्तीय नुकसान की भरपाई के लिए ग्राहकों से ऊंची ब्याज दरें वसूल सकें। इससे देरी से भुगतान करने वाले ग्राहकों पर आर्थिक दबाव बढ़ेगा।
उपभोक्ताओं के लिए चेतावनी
यह फैसला ग्राहकों के लिए एक संकेत है कि उन्हें अपने क्रेडिट कार्ड बिलों का समय पर भुगतान करना चाहिए। अन्यथा, उन्हें बैंकों की ओर से तय की गई ऊंची ब्याज दरों का सामना करना पड़ सकता है।
इस फैसले से यह भी स्पष्ट हो गया है कि उपभोक्ताओं को क्रेडिट कार्ड का उपयोग जिम्मेदारी से करना होगा। यह निर्णय बैंकों और ग्राहकों के बीच अनुशासन और पारदर्शिता बनाए रखने में मदद करेगा।