सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर यह स्पष्ट किया है कि वैवाहिक विवादों में पत्नी को दिया जाने वाला गुजारा भत्ता पति के लिए सजा जैसा नहीं होना चाहिए। अदालतों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि पत्नी और बच्चों की बुनियादी जरूरतें पूरी हों, लेकिन इसके साथ ही पति की आर्थिक स्थिति और उसकी अन्य जिम्मेदारियों का भी ध्यान रखा जाए।
‘रजनेश बनाम नेहा’ के दिशानिर्देश दोहराए
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस प्रसन्ना बी. वराले की बेंच ने अपने 10 दिसंबर 2024 के एक फैसले में ‘रजनेश बनाम नेहा’ (2020) केस के दौरान दिए गए दिशानिर्देशों को दोहराया। 2020 में जस्टिस इंदु मल्होत्रा और सुभाष रेड्डी की बेंच ने वैवाहिक विवादों में गुजारा भत्ता तय करने के लिए 8 प्रमुख दिशानिर्देश दिए थे। कोर्ट ने एक बार फिर इन्हें सभी अदालतों द्वारा पालन करने की सलाह दी है।
गुजारा भत्ता तय करने के लिए 8 दिशानिर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि तलाक के समय पत्नी और बच्चों को दी जाने वाली गुजारा भत्ता की राशि तय करते समय अदालतों को निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए:
- सामाजिक-आर्थिक स्थिति: पति और पत्नी की आर्थिक और सामाजिक स्थिति को देखना जरूरी है।
- बुनियादी जरूरतें: पत्नी और बच्चों की भविष्य से जुड़ी आवश्यक जरूरतों को प्राथमिकता दी जाए।
- शैक्षणिक योग्यता और रोजगार: दोनों पक्षों की शैक्षणिक योग्यता और रोजगार के साधनों को ध्यान में रखा जाए।
- आय और संपत्ति: पति-पत्नी के आय के साधनों और संपत्तियों की जानकारी हासिल की जाए।
- पूर्व जीवन स्तर: ससुराल में रहते समय पत्नी का जीवन स्तर क्या था, इसका मूल्यांकन किया जाए।
- जॉब छोड़ने का कारण: अगर पत्नी ने परिवार का ध्यान रखने के लिए नौकरी छोड़ी है तो इसे भी देखा जाए।
- कानूनी लड़ाई का खर्च: यदि पत्नी की आय नहीं है तो अदालत में कानूनी लड़ाई के खर्च का प्रावधान भी किया जाए।
- पति पर आर्थिक बोझ: पति की आमदनी और उसकी अन्य जिम्मेदारियों का आकलन करते हुए मेनटेनेंस राशि तय की जाए।
स्थायी फॉर्मूला नहीं, मामले के हिसाब से निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि ये 8 दिशानिर्देश हर मामले के लिए स्थायी फॉर्मूला नहीं हैं। अदालतों को मामले के तथ्यों और परिस्थितियों के अनुसार आदेश देने की छूट होगी।
‘मनीष कुमार जैन बनाम अंजू जैन’ केस में फैसला
यह निर्णय ‘मनीष कुमार जैन बनाम अंजू जैन’ केस के दौरान सुनाया गया। कोर्ट ने इस मामले में दोनों पक्षों की आर्थिक स्थिति का मूल्यांकन करने के बाद 5 करोड़ रुपये की स्थायी एलिमनी राशि तय की।
पिछले फैसलों का जिक्र
जस्टिस विक्रम नाथ ने 15 जुलाई 2024 को दिए गए ‘किरण ज्योत मैनी बनाम अनीश पटेल’ केस के फैसले का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि गुजारा भत्ता पत्नी और बच्चों की बुनियादी जरूरतें पूरी करने का प्रावधान है, न कि पति को दंडित करने का।
संतुलन बनाए रखना जरूरी
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला स्पष्ट करता है कि अदालतों को संतुलित दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। एक तरफ पत्नी और बच्चों की जरूरतों को सुनिश्चित करना जरूरी है, तो दूसरी तरफ पति की आर्थिक स्थिति, उसकी जिम्मेदारियों और अधिकारों का भी ध्यान रखना होगा। यह फैसला अदालतों के लिए एक मार्गदर्शिका साबित हो सकता है।