2025 में जब डोनाल्ड ट्रंप पुनः राष्ट्रपति पद की शपथ लेंगे, तो उनका दूसरा कार्यकाल भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए अहम हो सकता है। हालांकि, ट्रंप 2.0 का भारत में स्वागत किया जा रहा है, लेकिन इसके साथ एक गंभीर चिंता भी जुड़ी हुई है, और वह है भारतीय रुपया। स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) द्वारा हाल ही में जारी एक रिपोर्ट में इस आशंका को व्यक्त किया गया है कि ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में भारतीय रुपया 8 से 10 फीसदी तक कमजोर हो सकता है। अगर ऐसा हुआ, तो रुपये का मूल्य गिरकर अब तक के सबसे निचले स्तर तक पहुंच सकता है।
क्या है एसबीआई की रिपोर्ट का निष्कर्ष?
एसबीआई की रिपोर्ट में यह अनुमान जताया गया है कि ट्रंप के पहले कार्यकाल के दौरान रुपये में 11 फीसदी की गिरावट आई थी। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि ट्रंप 2.0 में डॉलर के मुकाबले रुपये का भाव और गिर सकता है, जिससे यह 87 से 92 रुपये के बीच पहुंच सकता है। रिपोर्ट में ट्रंप के पहले कार्यकाल के मुकाबले बाइडेन सरकार के दौरान रुपये की स्थिति को थोड़ा बेहतर बताया गया, जिसमें रुपये की कमजोरी 14.5 फीसदी रही। इसके बावजूद, ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में रुपया और कमजोर हो सकता है।
रुपया कमजोर क्यों होता है?
रुपये की कमजोरी का मुख्य कारण अंतरराष्ट्रीय व्यापार है। जब एक देश ज्यादा आयात करता है और कम निर्यात करता है, तो उसे विदेशी मुद्रा की आवश्यकता होती है। चूंकि दुनिया भर में अमेरिकी डॉलर का एकतरफा राज है, इसलिए भारत जैसे देशों को डॉलर की ज्यादा जरूरत होती है। भारतीय अर्थव्यवस्था में व्यापार घाटा लगातार बढ़ रहा है, और 2023-24 में भारत का व्यापार घाटा लगभग 20 लाख करोड़ रुपये था। इस स्थिति में, भारत को अपनी मुद्रा को मजबूत बनाए रखने के लिए अधिक डॉलर की खरीद करनी पड़ती है।
भारत का विदेशी मुद्रा भंडार और डॉलर की स्थिति
अक्टूबर 2024 तक भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 589.84 अरब डॉलर था, लेकिन अगर भारत के पास उतना डॉलर नहीं होता जितना अमेरिका के पास है, तो रुपये का मूल्य घट सकता है। उदाहरण के लिए, यदि एक डॉलर की कीमत 84 रुपये से बढ़कर 92 रुपये तक पहुंच जाती है, तो यह रुपये के लिए एक बड़ा झटका होगा। इसके बावजूद, भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) अपने विदेशी मुद्रा भंडार से डॉलर खरीदकर रुपये की स्थिति को स्थिर रखने की कोशिश करता है।
रुपया कभी मजबूत हुआ है?
इतिहास में कभी-कभी रुपये में मजबूती भी आई है। भारत की आजादी के समय एक डॉलर की कीमत 4.76 रुपये थी, और 1965 तक यह स्थिति बनी रही। 1970 के दशक में रुपये में धीरे-धीरे कमजोरी आनी शुरू हो गई, और 1991 में उदारीकरण के बाद रुपये की गिरावट तेज हो गई। हालांकि, कुछ समय के लिए रुपये में सुधार भी हुआ। 2003 से 2005 के बीच रुपये में 2.5 रुपये तक की मजबूती आई थी, और 2017 में भी रुपये में सुधार देखा गया था।
ट्रंप 2.0 के दौरान रुपये की स्थिति पर असर
एसबीआई की रिपोर्ट में यह संभावना जताई गई है कि ट्रंप के दूसरे कार्यकाल के दौरान रुपये की स्थिति पर नकारात्मक असर पड़ सकता है, खासकर डॉलर की तुलना में। इसके बावजूद, भारत की अर्थव्यवस्था में कई बदलाव हो रहे हैं, और उम्मीद है कि कुछ समय बाद रुपये में मजबूती भी आ सकती है। लेकिन फिलहाल रुपये के गिरने की आशंका बनी हुई है।