
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने रेसिप्रोकल टैरिफ (पारस्परिक शुल्क) लागू करने की घोषणा कर दी है। यह टैरिफ 2 अप्रैल 2025 से प्रभावी होगा और इसे “मुक्ति दिवस” (Liberation Day) के रूप में बताया गया है। ट्रंप ने कहा कि यह शुल्क सिर्फ कुछ देशों तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि दुनिया के सभी देशों पर लागू होगा।
क्या है रेसिप्रोकल टैरिफ?
रेसिप्रोकल टैरिफ एक “जैसे को तैसा” नीति की तरह काम करेगा। अगर कोई देश अमेरिका से आयात होने वाले सामान पर कर (टैरिफ) लगाता है, तो अमेरिका भी उसी अनुपात में उस देश के सामान पर कर लगाएगा।
उदाहरण के लिए, अगर भारत अमेरिकी उत्पादों पर 10% आयात शुल्क लगाता है, तो अमेरिका भी भारत से आने वाले उत्पादों पर 10% का ही टैक्स लगाएगा।
टैरिफ का असर और उद्देश्य
डोनाल्ड ट्रंप का कहना है कि यह नीति अमेरिका के व्यापार घाटे (Trade Deficit) को कम करने के लिए लागू की जा रही है। इससे अमेरिकी कंपनियों और उद्योगों को फायदा होगा और घरेलू उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा।
हालांकि, टैरिफ बढ़ने से आयातित सामान महंगा हो सकता है, जिससे उपभोक्ताओं पर असर पड़ेगा। इस नीति से दुनिया के कई देशों के व्यापारिक संबंधों में बदलाव आने की संभावना है।
किन देशों पर होगा असर?
अमेरिकी सरकार के आर्थिक सलाहकार केविन हैसेट ने कहा कि इस टैरिफ नीति का मुख्य लक्ष्य 10 से 15 देशों का व्यापार असंतुलन ठीक करना है। हालांकि, उन्होंने यह स्पष्ट नहीं किया कि किन देशों को सबसे अधिक प्रभावित किया जाएगा।
संभावित देशों में चीन, भारत, यूरोपीय संघ, कनाडा, मैक्सिको और जापान शामिल हो सकते हैं, क्योंकि ये देश अमेरिकी व्यापार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
ट्रंप की नई व्यापार रणनीति
डोनाल्ड ट्रंप ने पहले ही एल्युमिनियम, स्टील और ऑटोमोबाइल पर टैरिफ बढ़ा दिया है। इसके अलावा, चीन से आयात होने वाले सभी उत्पादों पर अतिरिक्त टैरिफ लगाया गया है।
फरवरी 2025 में ट्रंप ने अमेरिकी व्यापार अधिकारियों को निर्देश दिया था कि वे सभी देशों की समीक्षा करें और एक लिस्ट तैयार करें, जिसमें यह तय किया जाए कि किस देश पर कितना टैरिफ लगाया जाए।
व्हाइट हाउस की व्यापार नीति
ट्रंप प्रशासन इस टैरिफ नीति को अमेरिकी अर्थव्यवस्था को मजबूत करने और घरेलू बाजार को बढ़ावा देने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम मानता है।
ट्रंप का कहना है कि यह टैरिफ केवल अमेरिका की सुरक्षा और आर्थिक स्थिरता के लिए लगाया जा रहा है। हालांकि, उन्होंने संकेत दिया है कि कुछ मामलों में टैरिफ को कम भी किया जा सकता है, लेकिन यह पूरी तरह से इस बात पर निर्भर करेगा कि दूसरा देश अमेरिका के साथ कैसा व्यापार करता है।
व्यापार युद्ध का खतरा?
रेसिप्रोकल टैरिफ लागू होने से वैश्विक व्यापार युद्ध (Trade War) की संभावना बढ़ सकती है। अगर दूसरे देश भी अमेरिका पर जवाबी टैरिफ लगाते हैं, तो इससे व्यापार में अस्थिरता आ सकती है।
विशेषज्ञों का मानना है कि इस नीति के कारण:
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आयातित सामान महंगा हो सकता है, जिससे उपभोक्ताओं पर असर पड़ेगा।
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अमेरिकी निर्यात पर भी असर पड़ सकता है, क्योंकि अन्य देश भी जवाबी कार्रवाई कर सकते हैं।
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व्यापार संतुलन में बदलाव आएगा, जिससे कुछ देशों की अर्थव्यवस्था प्रभावित हो सकती है।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
अर्थशास्त्रियों का मानना है कि रेसिप्रोकल टैरिफ के दोनों फायदे और नुकसान हैं। यह नीति घरेलू उद्योगों को मजबूती दे सकती है, लेकिन दूसरे देशों से संबंधों को प्रभावित कर सकती है।
अगर सभी देश इस नीति को अपनाने लगें, तो इससे वैश्विक व्यापार में अनिश्चितता बढ़ सकती है और मुद्रास्फीति (Inflation) भी बढ़ सकती है।
अमेरिका और दुनिया पर असर
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अमेरिका में: कुछ कंपनियों को फायदा होगा, लेकिन उपभोक्ताओं को महंगे सामान का सामना करना पड़ सकता है।
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चीन पर: चीन को सबसे ज्यादा नुकसान हो सकता है, क्योंकि अमेरिका उसकी सबसे बड़ी मार्केट है।
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भारत पर: भारत से अमेरिका को निर्यात होने वाले सामान पर अतिरिक्त टैक्स लग सकता है, जिससे भारतीय कंपनियों पर असर पड़ेगा।
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यूरोपीय संघ पर: यूरोपीय देशों से आने वाले उत्पादों पर टैरिफ बढ़ सकता है, जिससे उनके निर्यात पर असर पड़ेगा।
डोनाल्ड ट्रंप की यह नई टैरिफ नीति वैश्विक व्यापार को हिला सकती है। अगर सभी देश इसे अपनाते हैं, तो अंतरराष्ट्रीय व्यापार महंगा और जटिल हो सकता है।
अब देखना होगा कि अन्य देश इस नीति पर कैसी प्रतिक्रिया देते हैं और क्या यह नीति अमेरिका की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में सफल होती है या नहीं।