केंद्र सरकार ने ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ (वन नेशन, वन इलेक्शन) के विधेयक को आगे बढ़ाने की दिशा में एक बड़ा कदम उठाया है। गुरुवार (12 दिसंबर 2024) को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने इस विधेयक को मंजूरी दे दी। इस बहुप्रतीक्षित विधेयक को अगले सप्ताह संसद के शीतकालीन सत्र में पेश किए जाने की संभावना है। बीजेपी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार लंबे समय से इस विचार को मूर्त रूप देने के लिए प्रयासरत है।
केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान का बयान
इससे पहले, बुधवार (11 दिसंबर 2024) को केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ की जोरदार वकालत की। उन्होंने इसे देश की प्रगति में बाधा उत्पन्न करने वाले बार-बार होने वाले चुनावों का समाधान बताया। हरियाणा के कुरुक्षेत्र में आयोजित अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव के तहत एक कार्यक्रम में चौहान ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत तेज़ी से आगे बढ़ रहा है।
उन्होंने कहा, “भारत को ‘विश्व गुरु’ बनाने का सपना साकार हो रहा है, लेकिन बार-बार होने वाले चुनाव देश के विकास में बाधा डाल रहे हैं। जब एक चुनाव समाप्त होता है, तो दूसरा शुरू हो जाता है। चुनावी तैयारियां पूरे साल चलती रहती हैं, जिससे देश के संसाधनों और समय का अपव्यय होता है।”
केंद्र सरकार का उद्देश्य
‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ का उद्देश्य देश में लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और स्थानीय निकायों के चुनाव एक साथ कराना है। केंद्र सरकार का मानना है कि इससे देश की आर्थिक और प्रशासनिक व्यवस्था पर पड़ने वाला बोझ कम होगा। सितंबर 2024 में सरकार ने इस दिशा में एक बड़ा कदम उठाते हुए, उच्च स्तरीय समिति की सिफारिशों को स्वीकार किया था। समिति ने चरणबद्ध तरीके से चुनाव कराने का सुझाव दिया था।
चुनौतियां और अड़चनें
हालांकि, इस योजना को लागू करना आसान नहीं है। मौजूदा संवैधानिक व्यवस्था में इसे लागू करने के लिए व्यापक संशोधनों की आवश्यकता होगी। इसके लिए लगभग छह विधेयक लाने होंगे, जिनमें संवैधानिक प्रावधानों में बदलाव शामिल है।
इन विधेयकों को पारित करने के लिए संसद में दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता होगी, जो केंद्र सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती है। इसके अलावा, इस विषय पर राजनीतिक और क्षेत्रीय दलों के बीच आम सहमति बनाना भी आवश्यक है।
संविधान में संशोधन की आवश्यकता
‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ को लागू करने के लिए संविधान के निम्नलिखित अनुच्छेदों में संशोधन की जरूरत होगी:
- अनुच्छेद 83 (लोकसभा का कार्यकाल)
- अनुच्छेद 85 (लोकसभा का सत्रावसान)
- अनुच्छेद 172 (विधानसभाओं का कार्यकाल)
- अनुच्छेद 174 (विधानसभाओं का सत्रावसान)
- अनुच्छेद 356 (राष्ट्रपति शासन की व्यवस्था)
- 10वीं अनुसूची (दलबदल कानून)
इसके साथ ही, निर्वाचन आयोग और प्रशासनिक तंत्र को एक राष्ट्र, एक चुनाव के लिए तैयार करने में भी समय लगेगा।
वन नेशन, वन इलेक्शन के फायदे
- संसाधनों की बचत: बार-बार चुनाव से होने वाले आर्थिक खर्च को कम किया जा सकेगा।
- प्रशासनिक स्थिरता: चुनावों के दौरान लागू आचार संहिता के कारण विकास कार्य बाधित नहीं होंगे।
- चुनावी माहौल का स्थायित्व: बार-बार चुनाव से बचते हुए जनता और सरकार, दोनों को राहत मिलेगी।
- चुनावी दबाव में कमी: राजनीतिक दलों को बार-बार चुनाव की रणनीति बनाने की बजाय दीर्घकालिक नीतियों पर ध्यान केंद्रित करने का अवसर मिलेगा।
सार्वजनिक समर्थन और विपक्ष की प्रतिक्रिया
‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ को लेकर जनता के एक बड़े वर्ग का समर्थन है। लोग इसे समय और धन बचाने का एक कारगर कदम मान रहे हैं। हालांकि, विपक्षी दल इसे लोकतंत्र पर खतरा बताते हुए, क्षेत्रीय स्वायत्तता पर असर पड़ने की आशंका जता रहे हैं।
‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार की एक महत्वाकांक्षी योजना है। इससे चुनावी प्रक्रिया को अधिक संगठित और प्रभावी बनाने की उम्मीद है। हालांकि, इसे लागू करना एक कठिन और जटिल प्रक्रिया है, जिसमें राजनीतिक और कानूनी बाधाओं को पार करना होगा। अब देखना होगा कि सरकार इसे कितनी जल्दी और किस तरह से अमल में ला पाती है।