भारत की संसद का शीतकालीन सत्र लगातार हंगामे और व्यवधानों की भेंट चढ़ता जा रहा है। शुक्रवार को भी दोनों सदनों में कामकाज नहीं हो सका। राज्यसभा की कार्यवाही तो शुरू होते ही स्थगित करनी पड़ी, और सोमवार तक के लिए इसे रोक दिया गया। सभापति जगदीप धनखड़ ने इस स्थिति पर गहरी चिंता जताते हुए कहा कि विपक्षी दल नियम 267 का उपयोग एक हथियार के रूप में कर रहे हैं, जिससे सदन की सामान्य कार्यवाही बाधित हो रही है।
नियम 267 क्या है?
नियम 267 राज्यसभा की कार्यवाही में एक महत्वपूर्ण प्रावधान है, जिसके तहत कोई सदस्य अपने मुद्दे पर चर्चा करने के लिए सदन के पूर्व-निर्धारित एजेंडे को निलंबित करने का प्रस्ताव रख सकता है। यदि यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया जाता है, तो सदन में सभी अन्य कार्यों को रोक कर उस विषय पर चर्चा की जाती है। इस नियम के तहत चर्चा का प्रस्ताव अत्यधिक महत्वपूर्ण मुद्दों पर लाया जाता है, जिनका राष्ट्रीय महत्व होता है। पिछले 36 वर्षों में इस नियम के तहत केवल छह बार चर्चा की अनुमति दी गई है, और इसे असाधारण परिस्थितियों में ही लागू किया जाता है।
हंगामे का कारण और विपक्ष की भूमिका
राज्यसभा में लगातार हंगामे के कारण शीतकालीन सत्र का पहला सप्ताह पूरी तरह से बर्बाद हो गया। इस दौरान न तो शून्यकाल हुआ, न ही प्रश्नकाल, और न ही कोई अन्य विधायी कामकाज संपन्न हो सका। विपक्षी दलों ने अदानी समूह के खिलाफ भ्रष्टाचार, मणिपुर और संभल में हुई हिंसा सहित कुछ अन्य मुद्दों पर चर्चा की मांग की। हालांकि, सभापति ने हर बार विपक्षी दलों द्वारा उठाए गए इन मुद्दों पर चर्चा की अनुमति देने से इनकार कर दिया।
सभापति का कड़ा बयान
सभापति जगदीप धनखड़ ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “विपक्षी दल नियम 267 का उपयोग अपने मुद्दों को उठाने के लिए एक हथियार के रूप में कर रहे हैं, और इस वजह से सदन की कार्यवाही बाधित हो रही है।” उन्होंने यह भी कहा कि इससे संसद का समय व्यर्थ जा रहा है, जो जनता के लिए बहुत बड़ा झटका है। धनखड़ ने सदस्यों से गहन चिंतन का अनुरोध करते हुए कहा कि इस प्रकार का व्यवधान एक बहुत ही ‘बुरा उदाहरण’ प्रस्तुत करता है और यह देश के नागरिकों का अपमान है।
सदन का समय बर्बाद होना चिंता का विषय
धनखड़ ने कहा कि संसद का समय बर्बाद हो रहा है, और यह केवल विधायी कार्यों के लिए नहीं, बल्कि सार्वजनिक हित के लिए भी महत्वपूर्ण है। “हमारे द्वारा ली गई शपथ का पालन करते हुए हमें अपने कर्तव्यों का निर्वहन करना चाहिए था। समय का नुकसान और अवसर का नुकसान दोनों बड़े मुद्दे हैं, विशेष रूप से प्रश्नकाल का न होना,” उन्होंने कहा। सभापति ने यह भी कहा कि इस तरह के व्यवधानों से संसद अप्रासंगिक होती जा रही है, और लोग इसकी आलोचना करने लगे हैं।
विपक्ष का रवैया और आरोप
विपक्षी दलों ने सदन की कार्यवाही में व्यवधान डालने के आरोपों का जवाब देते हुए कहा कि वे जरूरी मुद्दों पर चर्चा करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। विपक्षी दलों का कहना है कि यदि संसद में जरूरी मुद्दों पर चर्चा नहीं होगी, तो यह लोकतंत्र की सेहत के लिए खतरनाक साबित हो सकता है। विपक्ष ने संसद में कामकाज को रोकने का आरोप सभापति पर भी लगाया है, जिनका कहना था कि नियम 267 का अनावश्यक इस्तेमाल किया जा रहा है।
आगे का रास्ता
संसद का शीतकालीन सत्र अभी भी अपनी पहली हफ्ते की झंझट से बाहर नहीं निकल सका है, और उम्मीद की जा रही है कि अगले कुछ दिनों में दोनों पक्षों के बीच कोई समाधान निकलेगा। विपक्ष ने स्पष्ट रूप से कहा है कि वे अहम मुद्दों पर चर्चा चाहते हैं, जबकि सरकार इसे संसद की कार्यवाही को बाधित करने का प्रयास मानती है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि संसद में आगे क्या स्थिति बनती है, और क्या दोनों पक्ष किसी समझौते पर पहुंच पाते हैं या नहीं।
नियम 267 के महत्व का आकलन
धनखड़ ने इस मुद्दे को उठाते हुए कहा कि नियम 267 को असाधारण परिस्थितियों में ही लागू किया जाना चाहिए, लेकिन विपक्ष इसे हर दिन उठाकर सदन की कार्यवाही में व्यवधान डाल रहा है। इस मुद्दे पर आगे कोई ठोस निर्णय लिया जाएगा या नहीं, यह तो समय ही बताएगा, लेकिन वर्तमान स्थिति संसद की कार्यवाही और उसके उद्देश्य के लिए चिंता का कारण बन चुकी है।