संसद के शीतकालीन सत्र में मंगलवार को भी हंगामा जारी रहा। अडानी मामले को लेकर विपक्ष ने लोकसभा से वॉकआउट किया और संसद परिसर में प्रदर्शन किया। इस प्रदर्शन में कांग्रेस के प्रमुख नेता राहुल गांधी और प्रियंका गांधी शामिल हुए। प्रदर्शन में विपक्षी सांसदों के हाथों में “मोदी-अडानी एक हैं” और “अडानी पर भारत को जवाबदेही चाहिए” जैसे नारे लिखे बैनर और प्लेकार्ड नजर आए।
अडानी मामले पर कांग्रेस का जोर
कांग्रेस पार्टी ने अडानी मामले पर सरकार को घेरने का प्रयास किया। कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने कहा कि, “हम मोदी सरकार की नीतियों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं। सदन के भीतर प्रोटेस्ट नहीं हो सकता, इसलिए संसद परिसर में हमने अपनी आवाज उठाई।” हालांकि, इस मुद्दे पर विपक्ष एकजुट नहीं दिखा। समाजवादी पार्टी (सपा) और तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने कांग्रेस के प्रदर्शन से दूरी बना ली।
विपक्षी दलों में मतभेद
संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान विपक्षी दलों के बीच मतभेद उभर कर सामने आए। कांग्रेस जहां अडानी मामले पर केंद्रित है, वहीं टीएमसी और सपा का ध्यान अन्य मुद्दों पर है। टीएमसी महंगाई, बेरोजगारी, किसान, उर्वरक, विपक्षी राज्यों को मिलने वाली धनराशि में कटौती और मणिपुर जैसे मुद्दों पर चर्चा चाहती है। इसी तरह, सपा ने संभल हिंसा पर चर्चा की मांग की। सपा सांसद धर्मेंद्र यादव ने कहा कि, “हमारे लिए किसान और संभल जैसे मुद्दे अधिक महत्वपूर्ण हैं, अडानी का मुद्दा नहीं।”
इंडिया ब्लॉक की बैठक और असहमति
सोमवार को संसद सत्र से पहले इंडिया ब्लॉक के नेताओं की बैठक हुई, जिसमें कांग्रेस नेता राहुल गांधी शामिल हुए। हालांकि, टीएमसी के सांसद इस बैठक में नहीं पहुंचे। टीएमसी का रुख साफ है कि वह सदन में सभी मुद्दों पर चर्चा चाहती है, न कि केवल एक मुद्दे पर।
रेणुका चौधरी के बयान पर विवाद
कांग्रेस नेता रेणुका चौधरी के बयान ने नया विवाद खड़ा कर दिया। उन्होंने कहा कि, “हमारी कोशिश है कि सदन की कार्यवाही सुचारू रूप से चले क्योंकि जनता ने हमें उनकी आवाज उठाने के लिए चुना है। लेकिन सदन चलाने की जिम्मेदारी कुर्सी पर बैठे लोगों की है। अगर वे लायक हैं तो सदन चलेगा, नहीं तो नहीं चलेगा।” उनके इस बयान को लेकर विरोधी दलों ने नाराजगी जताई।
विपक्ष की रणनीति और चुनौतियां
25 नवंबर से शुरू हुए संसद सत्र में कांग्रेस अडानी मामले पर केंद्रित है, जबकि अन्य विपक्षी दल कई अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा चाहते हैं। सपा और टीएमसी का मानना है कि सदन में किसानों, बेरोजगारी, और महंगाई जैसे ज्वलंत मुद्दों को भी प्राथमिकता मिलनी चाहिए।
इस स्थिति ने विपक्षी दलों के अंदर गहरे मतभेद को उजागर किया है। विपक्षी एकता की कोशिशें अडानी मामले पर चर्चा के चलते कमजोर होती दिख रही हैं। सत्र के दौरान यह देखना अहम होगा कि विपक्षी दल इन मतभेदों को दूर कर सरकार को एकजुट होकर घेरने में सक्षम हो पाते हैं या नहीं।