
मशहूर स्टैंडअप कॉमेडियन कुणाल कामरा एक बार फिर अपने तंज भरे अंदाज के चलते विवादों में घिर गए हैं। इस बार उनका कटाक्ष महाराष्ट्र के उप-मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे पर था, जिसे लेकर शिवसेना (शिंदे गुट) के कार्यकर्ताओं ने कड़ा विरोध जताया। इस मामले में पुलिस ने एफआईआर भी दर्ज कर ली है।
क्या है पूरा मामला?
कुणाल कामरा ने अपने स्टैंडअप शो के दौरान एकनाथ शिंदे और महाराष्ट्र की राजनीतिक स्थिति पर तंज कसा। उन्होंने फिल्म ‘दिल तो पागल है’ के एक गाने को नया रूप देकर शिंदे की राजनीतिक यात्रा और महाराष्ट्र की राजनीतिक उथल-पुथल पर व्यंग्य किया।
उन्होंने कहा,
“पहले क्या हुआ? शिवसेना, बीजेपी से बाहर आ गई। फिर शिवसेना, शिवसेना से बाहर आ गई। एनसीपी, एनसीपी से बाहर आ गई। एक वोटर को 9 बटन दे दिए, सब कन्फ्यूज हो गए! चालू एक जन ने किया था, वो मुंबई में एक बढ़िया जिला है ठाणे, वहीं से आते हैं। ठाणे की रिक्शा, चेहरे पर दाढ़ी, आंखों में चश्मा, हाय…. एक झलक दिखलाए कभी, गुवाहाटी में छुप जाए। मेरी नजर से तुम देखो, गद्दार नजर वो आए….”
भड़क उठे शिवसैनिक
कामरा का यह मजाक शिवसेना (शिंदे गुट) के समर्थकों को नागवार गुजरा और उन्होंने कई जगह विरोध प्रदर्शन किया। कुछ जगहों पर पोस्टर फाड़े गए और उनके खिलाफ नारेबाजी भी हुई। मुंबई और ठाणे में शिवसैनिकों ने विरोध जताया और कामरा की गिरफ्तारी की मांग की।
सरकार का रुख कड़ा
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने इस मामले में तीखी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा,
“कॉमेडी के अपने उसूल होते हैं, लेकिन जब जानबूझकर किसी बड़े नेता को बदनाम करने की कोशिश की जाए, तो यह बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। कुणाल कामरा को समझना चाहिए कि 2024 के चुनावों में जनता ने तय कर दिया है कि कौन देशभक्त है और कौन नहीं।”
फडणवीस ने यह भी साफ किया कि अगर इस तरह के अपमानजनक व्यंग्य दोहराए गए, तो कानूनी कार्रवाई होगी।
कुणाल कामरा का जवाब?
इस पूरे विवाद पर अभी तक कुणाल कामरा की तरफ से कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है, लेकिन सोशल मीडिया पर उनके समर्थक अभिव्यक्ति की आज़ादी को लेकर बहस कर रहे हैं। कुछ लोग इसे एक राजनीतिक कटाक्ष मान रहे हैं, जबकि कुछ का कहना है कि यह बदनाम करने की कोशिश है।
पहले भी विवादों में रहे हैं कुणाल कामरा
यह पहला मौका नहीं है जब कुणाल कामरा किसी विवाद में फंसे हों। इससे पहले भी उन्होंने कई बार राजनीतिक मुद्दों पर अपनी राय रखी है, जिससे सरकार और उनके समर्थकों से टकराव हुआ है।
अब देखना यह होगा कि यह विवाद आगे क्या मोड़ लेता है—क्या कुणाल कामरा पर कानूनी शिकंजा कसता है, या यह मामला अभिव्यक्ति की आज़ादी बनाम अपमानजनक कटाक्ष की बहस में उलझकर रह जाता है?