Uttarkashi News :17 दिन हो गए हैं जब से 41 कामगार उत्तराखंड के निर्माणाधीन सुरंग में फंसे हुए हैं। वर्तमान में कोई भी उत्तर नहीं है कि वे सुरंग से कब बाहर आएंगे।
सभी स्पष्टिकरण कर रहे हैं, क्योंकि फंसे हुए कामगारों के सामने लगभग 9 मीटर का सड़ा हुआ भूतल है, जिसका निर्मूलन कार्य जारी है।
कामगारों को शीघ्र निकाला जाएगा
माइक्रो Tunneling के विशेषज्ञ Krish Kapoor और Arnold Dicks, जो बचाव कार्य में लगे हैं, ने वायदा किया है कि कामगारों को शीघ्र निकाला जाएगा।शनिवार को सुरंग के अंदर ड्रिलिंग के दौरान, कुछ हिस्सा ऑगर मशीन का टूट गया और बचाव पाइप में फंस गया, जो बाहर निकाला गया है और अब शेष उत्खनन मैन्युअली किया जाएगा।परिस्थितियाँ कठिन हैं, लेकिन कभी भी प्रकाश की किरण बरस सकती है। जिसका नाम इस बचाव कार्य में सबसे बड़ा रोल है, उसका नाम ऑगर मशीन है।
इस परिस्थिति में ऑगर मशीन से संबंधित कई सवाल हैं जिनके उत्तरों को हमने प्रयास किया
ऑगर मशीन को हिंदी में ऑगर मशीन या Drilling भी कहा जाता है, जिसका काम है भूमि में छेद बनाना।Jaybee इंडस्ट्रीज जयपुर कंपनी ने बहुत सालों से ऑगर मशीनें निर्मित की हैं। कंपनी के वरिष्ठ बिक्री कर्मी Mukesh Kumavat कहते हैं कि वह स्वयं उत्तराखंड में जारी बचाव कार्य पर क़रीबी नज़र रख रहे हैं।उन्होंने बताया कि ऑगर मशीन का उपयोग समग्र और क्षैतिज दोनों छेद बनाने में किया जाता है। पाइप के ऊपर गोल चक्र रखे जाते हैं और मुँह के सामने एक कटिंग एज होती है, जिसका काम मिट्टी या चट्टान को काटना है।
कंपनी के वरिष्ठ बिक्री कर्मी कुमावत ने बताया
कंपनी के वरिष्ठ बिक्री कर्मी कुमावत ने बताया जब मशीन के मुँह पर कटिंग मिट्टी को काटने का काम करता है, तो गोल दिखने वाले प्लेट्स को बाहर निकालने का काम करते हैं”ड्रिलिंग के लिए जिस कटिंग एज का उपयोग होता है, उसे Tunguston Carboid से बनाया जाता है, क्योंकि यह कठिन सतहों को काटने में सहायक है।”ऑगर मशीन में GPS और इलेक्ट्रॉनिक ट्रैकिंग सिस्टम भी होता है, ताकि ऑपरेटर किसी भी सतह पर एक निश्चित कोण में छेद बना सके।
सिल्क्यारा और बरकोट के बीच लगभग 4 किलोमीटर लंबी सुरंग
सिल्क्यारा और बरकोट के बीच लगभग 4 किलोमीटर लंबी सुरंग बना रहा है जब दीपावली के दिन यह गिर गई, तब 41 कामगार सिल्क्यारा गेट के लगभग 250 मीटर की दूरी पर थे। अचानक उनके सामने लगभग 70 मीटर का सड़ा गिर गया और वे उसी सुरंग में फंस गए।सामान्य तरीके से खुदाई करके सड़ा बाहर निकाला जा रहा था, लेकिन इसके करते समय यह ख़तरा था कि सड़े को बाहर निकालते समय ऊपर से और भी सड़ा गिर सकता था, इस परिस्थिति में ऑगर मशीन की मदद ली गई।
ऑगर मशीन ने 60 मीटर लंबे एक बचाव पाइप को फिट किया
ऑगर मशीन ने 60 मीटर लंबे एक बचाव पाइप को फिट किया जिसके सहायता से कामगारों को बाहर निकाला जाएगा। यह पाइप लगभग 900 मिमी चौड़ा है।जब यह मशीन ड्रिल करती है, इससे कम शोर होता है, जिससे सतह को क्षति होती है। इस परिस्थिति में, ऊपर से सड़ा गिरने की कम संभावना है। ऑगर मशीन से भूमि के अंदर लगभग 95 फीट तक का छेद बना जा सकता है। इसके बाद ऑगर में एक एक्सटेंशन रोड लगाना होता है।
इन्हें भी पढ़ें... जैसे-जैसे कश्मीर घाटी में ठंड का असर बढ़ रहा है, तापमान में लगातार गिरावट के कारण छात्रों और स्कूल स्टाफ की सहूलियत को ध्यान में रखते हुए सरकारी स्कूलों का समय बदल दिया गया है। अब 1 नवंबर 2024 से सरकारी स्कूल सुबह 10 बजे खुलेंगे और दोपहर 3 बजे तक चलेंगे। यह बदलाव ठंड के मौसम में बच्चों की सुरक्षा और स्वास्थ्य की प्राथमिकताओं को देखते हुए किया गया है। कश्मीर डिवीजन के लिए स्कूल शिक्षा निदेशालय (डीएसईके) ने सोमवार को जारी एक आदेश में इस नए समय-सारणी की घोषणा की। श्रीनगर जिले की म्यूनिसिपल सीमा के बाहर स्थित स्कूलों का समय सुबह 10:30 बजे से लेकर दोपहर 3:30 बजे तक होगा, जबकि श्रीनगर म्यूनिसिपल कारपोरेशन की सीमा के अंदर आने वाले स्कूलों के लिए समय सुबह 10 बजे से लेकर दोपहर 3 बजे तक निर्धारित किया गया है। छात्रों और स्टाफ की सुरक्षा के मद्देनजर फैसला यह फैसला इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि सर्दियों के मौसम में सुबह का तापमान बहुत कम हो जाता है, जिससे ठंड का असर बढ़ जाता है। ऐसे में बच्चों का जल्दी स्कूल आना उनके स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है। पिछले वर्षों के अनुभवों के आधार पर यह देखा गया है कि इस प्रकार के समय बदलाव से बच्चों और शिक्षकों को राहत मिलती है और उनके स्वास्थ्य की सुरक्षा भी होती है। डीएसईके ने सभी संबंधित अधिकारियों को आदेश दिया है कि वे इस नए समय-सारणी का पालन सुनिश्चित करें और इसे सुचारु रूप से लागू करें। यह समय बदलाव न केवल बच्चों की सहूलियत के लिए है बल्कि उनके परिवारों को भी इस बात का संतोष देगा कि बच्चे ठंड में सुरक्षित हैं। गिरते तापमान के चलते देरी की आवश्यकता कश्मीर के कई इलाकों में तापमान में तेजी से गिरावट दर्ज की जा रही है, जो न केवल स्कूल के छात्रों बल्कि उनके अभिभावकों के लिए भी चिंता का कारण बन रहा है। नवंबर की शुरुआत में तापमान और भी कम हो सकता है, जिससे सुबह-सुबह ठंड का असर और बढ़ सकता है। ठंड के इस प्रभाव को ध्यान में रखते हुए, स्कूलों का नया समय तय किया गया है ताकि बच्चों को सुबह की ठंड से राहत मिल सके और वे अपनी पढ़ाई पर बेहतर तरीके से ध्यान केंद्रित कर सकें। अभिभावकों और स्कूल प्रशासन के लिए दिशा-निर्देश नए समय-सारणी के लागू होने के साथ ही, स्कूल प्रशासन और अभिभावकों को सुझाव दिया गया है कि वे बच्चों के स्कूल पहुंचने और वापस आने के समय का ध्यान रखें। स्कूलों को अपने सुरक्षा उपायों में बदलाव करने की सलाह दी गई है, जिससे बच्चों को किसी भी प्रकार की असुविधा न हो। बच्चों को गर्म कपड़ों में स्कूल भेजना, उनके लिए सुरक्षित और गर्म वातावरण तैयार करना आदि आवश्यक कदम भी इस ठंड के मौसम में महत्वपूर्ण हो जाते हैं। छात्रों के लिए लाभदायक बदलाव ठंड के मौसम में इस समय-सारणी का लाभ यह होगा कि बच्चों को सुबह की ठंड में स्कूल जाने की चिंता नहीं रहेगी और वे समय पर स्कूल पहुंच सकेंगे। सुबह देर से स्कूल जाने से बच्चों को पर्याप्त नींद भी मिलेगी जो उनके स्वास्थ्य और पढ़ाई दोनों के लिए अच्छी है। इसके अलावा, इस समय-सारणी के तहत बच्चों को ज्यादा देर तक ठंड में बाहर नहीं रहना पड़ेगा, जो उनके स्वास्थ्य की सुरक्षा में सहायक साबित होगा। अगले कुछ महीनों में तापमान में और गिरावट की संभावना कश्मीर घाटी में नवंबर से फरवरी के बीच ठंड का असर अधिक होता है, और यहां का तापमान कई बार शून्य से नीचे चला जाता है। ऐसे में बच्चों के स्वास्थ्य को लेकर सतर्कता आवश्यक है। हर वर्ष ठंड के मौसम में स्कूलों के समय में बदलाव होता है ताकि बच्चों को ठंड से राहत मिल सके। सरकार का यह कदम स्थानीय समुदाय में सकारात्मक रूप में देखा जा रहा है। माता-पिता और अध्यापक इस फैसले का स्वागत कर रहे हैं और इसे बच्चों की भलाई के लिए एक महत्वपूर्ण कदम मान रहे हैं।