उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने आगामी उपचुनावों से पहले एक महत्वपूर्ण फैसला लिया है। अब यूपी पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) का चयन उत्तर प्रदेश सरकार खुद करेगी, इसके लिए यूपीएससी (संघ लोक सेवा आयोग) को पैनल नहीं भेजा जाएगा। सोमवार को हुई कैबिनेट बैठक में इस प्रस्ताव को मंजूरी दे दी गई है। अब इस नए नियम के तहत, यूपी सरकार राज्य में डीजीपी नियुक्ति की प्रक्रिया में अधिक स्वतंत्रता के साथ निर्णय ले सकेगी। इस नई व्यवस्था के लागू होने के बाद अब यूपी में डीजीपी का कार्यकाल दो साल का होगा।
योगी सरकार का यह फैसला केवल उत्तर प्रदेश तक सीमित नहीं है, बल्कि पंजाब के बाद यूपी देश का दूसरा राज्य बन गया है, जहां डीजीपी की नियुक्ति को लेकर नए नियम लागू किए जा रहे हैं।
अखिलेश यादव का तंज – ‘दिल्ली बनाम लखनऊ’ का मुकाबला
यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने इस फैसले पर निशाना साधते हुए इसे ‘दिल्ली बनाम लखनऊ’ की लड़ाई करार दिया है। उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा, “सुना है किसी बड़े अधिकारी को स्थायी पद देने और उसका कार्यकाल 2 साल बढ़ाने की व्यवस्था बनाई जा रही है… सवाल ये है कि व्यवस्था बनाने वाले खुद 2 साल रहेंगे या नहीं।”
अखिलेश का यह बयान सीधा सीएम योगी आदित्यनाथ पर कटाक्ष माना जा रहा है, जिसमें वे इशारों में इस फैसले को केंद्र की बजाय राज्य में नियंत्रण करने का प्रयास बता रहे हैं। अखिलेश ने इस मामले को ‘दिल्ली बनाम लखनऊ 2.0’ भी कहा है, जो साफ तौर पर यूपी की राजनीति में केंद्र और राज्य सरकार के बीच हो रहे शक्ति संतुलन की ओर इशारा करता है।
डीजीपी चयन के लिए बनी नई समिति
योगी सरकार ने डीजीपी के चयन की प्रक्रिया के लिए हाईकोर्ट के रिटायर जज की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया है। इस समिति में मुख्य सचिव, यूपीएससी के नामित व्यक्ति, उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष या उनके द्वारा नामित व्यक्ति, अपर मुख्य सचिव (गृह) और एक रिटायर डीजीपी को शामिल किया गया है।
अब इस समिति के जरिए डीजीपी का चयन होगा, जिससे डीजीपी का कार्यकाल स्थिर और दो साल का हो जाएगा। माना जा रहा है कि इस निर्णय के जरिए यूपी सरकार पुलिस प्रशासन में स्थायित्व और अनुशासन लाने का प्रयास कर रही है।
डीजीपी नियुक्ति की पहले की प्रक्रिया क्या थी?
अब तक डीजीपी नियुक्ति की प्रक्रिया के तहत, यूपी सरकार पुलिस सेवा में 30 वर्ष पूरे कर चुके अधिकारियों के नाम यूपीएससी को भेजती थी, जिनका छह माह का कार्यकाल शेष रहता। यूपीएससी इसके बाद राज्य सरकार को तीन अधिकारियों के नामों का पैनल भेजता था, जिसमें से सरकार इनमें से किसी एक को डीजीपी नियुक्त करती थी। इस प्रक्रिया में यूपीएससी की भूमिका महत्वपूर्ण थी, जिससे डीजीपी के चयन में केंद्र का हस्तक्षेप होता था।
हालांकि, अब यूपीएससी को पैनल न भेजने के फैसले के बाद केंद्र के हस्तक्षेप की भूमिका कम हो जाएगी और यूपी सरकार को डीजीपी चयन में अधिक स्वतंत्रता मिलेगी।
प्रशांत कुमार हो सकते हैं नए डीजीपी
खबरें हैं कि राज्य सरकार अब वर्तमान में कार्यवाहक डीजीपी प्रशांत कुमार को पूर्णकालिक डीजीपी बनाने की तैयारी में है। यूपी में आखिरी फुल-टाइम डीजीपी मुकुल गोयल थे, जिन्हें 11 मई 2022 को पद से हटा दिया गया था। इसके बाद से ही यूपी में कार्यवाहक डीजीपी नियुक्त करने की परंपरा शुरू हो गई थी।
नए फैसले का राजनीतिक प्रभाव और भविष्य की संभावनाएं
योगी सरकार के इस फैसले के कई राजनीतिक प्रभाव भी माने जा रहे हैं। उपचुनावों से पहले इस फैसले के कारण सीएम योगी अपनी सरकार की ताकत और नियंत्रण का संदेश देना चाहते हैं। इसके अलावा, राज्य की पुलिस व्यवस्था में स्थायित्व लाने और अपराध पर नियंत्रण के प्रयास के रूप में भी इसे देखा जा रहा है।
इस निर्णय से राज्य सरकार के पुलिस प्रशासन में एक नई परिपाटी शुरू हो सकती है। वहीं, अखिलेश यादव का ‘दिल्ली बनाम लखनऊ’ बयान यह संकेत दे रहा है कि यह मुद्दा आगामी चुनावों में भी प्रमुख रूप से उठ सकता है।