
भोपाल का ऐशबाग रेलवे ओवर ब्रिज (ROB) इन दिनों सुर्खियों में है। 18 करोड़ रुपये की लागत से बना यह ब्रिज अभी जनता के लिए खुला भी नहीं हुआ था कि विवादों में घिर गया। इसकी डिज़ाइन में मौजूद 90 डिग्री का तीखा मोड़ लोगों के लिए चिंता का कारण बन गया था, जिसे अब बदला जा रहा है।
क्या है मामला?
भोपाल के ऐशबाग इलाके में बना यह ओवर ब्रिज कुल 648 मीटर लंबा है। यह इलाका घनी आबादी और अव्यवस्थित ट्रैफिक के लिए जाना जाता है। जब ब्रिज लगभग तैयार हुआ, तो लोगों ने देखा कि इसमें एक बेहद तीखा 90 डिग्री का मोड़ है, जो किसी भी वाहन के लिए खतरनाक साबित हो सकता है। विशेषज्ञों और सोशल मीडिया यूजर्स ने आशंका जताई कि यह मोड़ आने वाले समय में दुर्घटनाओं का कारण बन सकता है। न्यूज़ चैनल ने इस मुद्दे को प्रमुखता से उठाया, जिसका असर अब साफ दिखने लगा है। रिपोर्ट के बाद PWD और रेलवे हरकत में आ गए। अब रेलवे ने इस खतरनाक मोड़ को थोड़ा और घुमावदार बनाने के लिए डिज़ाइन में बदलाव की मंजूरी दे दी है। साथ ही, ब्रिज की रेलिंग तोड़कर उस हिस्से को चौड़ा करने के लिए अतिरिक्त ज़मीन भी देने पर सहमति जताई है।
अब क्या होगा बदलाव?
PWD सूत्रों के मुताबिक, ब्रिज की चौड़ाई तीन फीट तक बढ़ाई जाएगी, जिससे मोड़ पर गाड़ियों को घुमाने के लिए ज़्यादा जगह मिलेगी। बुधवार को इंजीनियरों की एक टीम मशीनों के साथ ब्रिज के सेंटर पॉइंट का मापन करने भी पहुंची थी। इससे पहले मोड़ पर जगह बहुत कम थी, जो कि तेज़ रफ्तार वाहनों के लिए बेहद ख़तरनाक मानी जा रही थी।
सोशल मीडिया पर गुस्सा
इस ब्रिज को लेकर सोशल मीडिया पर लोगों का गुस्सा भी खूब फूटा। ‘X’ (पूर्व में ट्विटर) पर यूजर मनीष चौधरी ने तंज कसा कि, “ये इंजीनियरिंग का चमत्कार नहीं, बल्कि भ्रष्टाचार का उदाहरण है। 10 साल में बना ये पुल न सिर्फ ट्रैफिक जाम का कारण बनेगा, बल्कि हादसे का न्योता भी देगा।”
एक अन्य यूजर मुकेश ने लिखा, “मौत अब 90 डिग्री के कोण में आएगी। ये डेवलपमेंट नहीं, लोगों की जान से खिलवाड़ है।”
PWD मंत्री का बयान
जब पत्रकारों ने इस मुद्दे पर PWD मंत्री राकेश सिंह से सवाल किया, तो उन्होंने कहा कि पुल बनाने से पहले तमाम तकनीकी बातों का ध्यान रखा जाता है। उन्होंने यह भी कहा कि अगर कोई खामी है, तो उसकी जांच कराई जाएगी।फिलहाल यह राहत की बात है कि जनता की चिंताओं को गंभीरता से लिया गया है और समय रहते डिज़ाइन में सुधार की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। हालांकि यह सवाल अब भी बना हुआ है कि इतने बड़े और महंगे प्रोजेक्ट में ऐसा डिज़ाइन दोष पहली बार में पकड़ा क्यों नहीं गया?
यह मामला न केवल इंजीनियरिंग और प्रशासनिक लापरवाही को उजागर करता है, बल्कि बताता है कि मीडिया और जनता की सतर्कता से बदलाव संभव है।