
अमेरिका के सभी 50 राज्यों में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के खिलाफ ज़ोरदार विरोध प्रदर्शन हुए। यह विरोध उस समय और तेज़ हो गया जब ट्रंप ने वॉशिंगटन डीसी में अमेरिकी सेना की 250वीं वर्षगांठ और अपने 79वें जन्मदिन पर एक भव्य सैन्य परेड का आयोजन किया।
इस परेड को लेकर विरोधियों का कहना है कि यह आयोजन देश की परंपरा से मेल नहीं खाता और यह सिर्फ ट्रंप की छवि को मजबूत करने की कोशिश है।
‘नो किंग्स’ के बैनर तले देशव्यापी प्रदर्शन
देशभर के हजारों लोगों ने ‘No Kings’ (कोई राजा नहीं चाहिए) नाम के अभियान के तहत प्रदर्शन किए। प्रदर्शनकारियों का आरोप है कि ट्रंप एक तानाशाह की तरह व्यवहार कर रहे हैं और उनकी नीतियां अमेरिकी लोकतंत्र के खिलाफ हैं।
इन प्रदर्शनों में कई जगहों पर पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच झड़पें हुईं। पुलिस ने भीड़ को तितर-बितर करने के लिए आंसू गैस और फ्लैश बम का इस्तेमाल किया। प्रदर्शन में शामिल कई आम लोग और परिवार डरे हुए नज़र आए।
परेड पर 350 करोड़ रुपये से ज़्यादा खर्च
राष्ट्रपति ट्रंप द्वारा आयोजित इस परेड पर करीब 350 करोड़ रुपये (43 मिलियन डॉलर) खर्च किए गए। इस भारी खर्च को लेकर विपक्षी पार्टियों और नागरिक संगठनों ने कड़ी आलोचना की। उनका कहना है कि यह पैसा करदाताओं का है और इसे इस तरह से खर्च करना न्यायसंगत नहीं है।
विरोधियों का मानना है कि ट्रंप इस परेड के जरिए सैन्य ताकत को राजनीतिक लाभ के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं, जो लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ है। अमेरिका में सैन्य परेड की कोई परंपरा नहीं रही है, और यह आयोजन सिर्फ व्यक्तिगत प्रचार के लिए किया गया लगता है।
आव्रजन नीति पर भी विरोध
हाल ही में ट्रंप सरकार द्वारा अवैध प्रवासियों पर छापेमारी की गई, जिसमें कई लोगों को हिरासत में लिया गया। इसके खिलाफ लॉस एंजेलिस में विरोध भड़क उठा, जो जल्द ही हिंसा में बदल गया। हालात काबू करने के लिए ट्रंप ने नेशनल गार्ड्स की तैनाती का आदेश दिया, जिससे लोगों का गुस्सा और बढ़ गया।
बड़े शहरों में भी गूंजा विरोध
न्यूयॉर्क, शिकागो, डेनवर और ऑस्टिन जैसे बड़े शहरों में भी लोगों ने सड़कों पर उतरकर ट्रंप की नीतियों का विरोध किया। लोगों का कहना है कि सरकार अमानवीय और कठोर नीतियां अपना रही है, जिससे देश का लोकतंत्र कमजोर हो रहा है।
डोनाल्ड ट्रंप की नीतियों और कार्रवाइयों को लेकर अमेरिकी जनता में गहरी नाराजगी है। सैन्य परेड ने जहां उनके समर्थकों को उत्साहित किया, वहीं विपक्ष और नागरिक समाज ने इसे तानाशाही प्रवृत्ति करार दिया। अब देखना होगा कि ट्रंप इन विरोधों से कैसे निपटते हैं और जनता का भरोसा फिर से कैसे जीतते हैं।