
साल 2025 की दूसरी तिमाही में दुनियाभर के केंद्रीय बैंकों ने सोने को अपने विदेशी मुद्रा भंडार (ग्लोबल रिजर्व) में तेजी से शामिल किया है। अब गोल्ड की हिस्सेदारी कुल वैश्विक भंडार में 23% तक पहुंच गई है, जो कि पिछले 30 सालों में सबसे ज़्यादा है।
ये कोई अचानक उठाया गया कदम नहीं है। पिछले 6 सालों में सोने की हिस्सेदारी दोगुनी हो चुकी है। यह बदलाव दिखाता है कि दुनियाभर की सरकारें और केंद्रीय बैंक अमेरिकी डॉलर पर अपनी निर्भरता कम करने के मूड में हैं और अब सोने को ज्यादा भरोसेमंद संपत्ति मान रहे हैं।
सोना क्यों हो रहा है पसंद?
रूस-यूक्रेन युद्ध और पश्चिमी देशों की आर्थिक नीतियों के चलते अब कई देश अपने रिज़र्व में विविधता (डायवर्सिफिकेशन) ला रहे हैं। डॉलर और यूरो जैसे करेंसी रिजर्व के मुकाबले अब वे सोने को ज़्यादा सुरक्षित मान रहे हैं। यही कारण है कि 2025 की दूसरी तिमाही में:
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अमेरिकी डॉलर की हिस्सेदारी घटकर 44% रह गई, जो कि 1993 के बाद सबसे कम है।
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वहीं, यूरो की हिस्सेदारी भी घटकर 16% रह गई, जो पिछले 16 वर्षों में सबसे निचला स्तर है।
चीन की आक्रामक रणनीति
चीन लगातार 7वें महीने सोना खरीद रहा है। उसका केंद्रीय बैंक इस दिशा में सबसे तेजी से आगे बढ़ रहा है। मई 2025 में भी चीन ने बड़ी मात्रा में गोल्ड खरीदा।
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साल 2000 में चीन के पास 395 टन सोना था।
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अब यह बढ़कर लगभग 2,280 टन हो चुका है।
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कई जानकारों का मानना है कि असल में चीन के पास 5,000 टन से ज्यादा सोना हो सकता है, जो उसने गुप्त तरीकों से जमा किया है।
चीन सिर्फ खुद ही सोना नहीं खरीद रहा, बल्कि अपने नागरिकों को भी गोल्ड में निवेश करने के लिए प्रेरित कर रहा है।
भारत भी पीछे नहीं
भारत में सोने से जुड़ाव सदियों पुराना है। भारतीयों की पसंद में आज भी सोना पहले नंबर पर आता है, खासकर शादियों और त्योहारों के मौकों पर।
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एक अनुमान के अनुसार, भारतीय परिवारों के पास करीब 25,000 टन सोना है, जो दुनिया में सबसे ज़्यादा निजी स्वामित्व में है।
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भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) भी अब गोल्ड रिज़र्व बढ़ाने की दिशा में काम कर रहा है। फिलहाल भारत के पास 876.18 टन सरकारी गोल्ड रिजर्व है।
गोल्ड रिज़र्व में कौन सबसे आगे?
दुनिया के जिन देशों के पास सबसे ज्यादा गोल्ड रिज़र्व है, उनमें ये नाम टॉप पर हैं:
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अमेरिका – 8,133.46 टन
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जर्मनी – 3,351.53 टन
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इटली – 2,451.84 टन
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फ्रांस – 2,437 टन
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चीन – 2,280 टन
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स्विट्जरलैंड – 1,039.94 टन
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भारत – 876.18 टन
हालांकि चीन तेज़ी से आगे बढ़ रहा है, फिर भी वह अभी अमेरिका, जर्मनी और इटली जैसे देशों से पीछे है।
सोने की ओर बढ़ता रुझान यह दिखाता है कि दुनियाभर की अर्थव्यवस्थाएं किसी एक मुद्रा, खासकर अमेरिकी डॉलर पर पूरी तरह निर्भर नहीं रहना चाहतीं। गोल्ड अब फिर से “सेफ हैवेन” यानी सुरक्षित निवेश का प्रतीक बनता जा रहा है।
आने वाले समय में, जैसे-जैसे ग्लोबल राजनीति और अर्थव्यवस्था में अस्थिरता बढ़ेगी, सोना फिर से अपनी चमक बिखेरता रहेगा। निवेशकों और सरकारों – दोनों के लिए यह एक भरोसेमंद संपत्ति बनता जा रहा है।