
महाराष्ट्र सरकार ने राज्य के स्कूलों में पहली से पांचवी कक्षा तक के बच्चों के लिए हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में अनिवार्य कर दिया है। यह फैसला देवेंद्र फडणवीस सरकार द्वारा लिया गया है और इसका आदेश हाल ही में जारी हुआ। लेकिन इस फैसले के बाद राजनीति गर्मा गई है।
राज ठाकरे ने जताया विरोध
महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) के प्रमुख राज ठाकरे ने इस फैसले का कड़ा विरोध किया है। उन्होंने कहा कि हिंदी कोई राष्ट्र भाषा नहीं है, बल्कि यह सिर्फ एक राज्य की भाषा है। राज ठाकरे ने दावा किया कि उन्होंने 17 जून को सरकार को पत्र लिखकर यह आदेश वापस लेने की मांग की थी। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री ने उन्हें भरोसा दिलाया था कि हिंदी अनिवार्यता का फैसला वापस लिया जाएगा, इसलिए उन्होंने पहले ही स्कूलों के प्रिंसिपलों को पत्र भेजने की तैयारी कर ली थी।
“बच्चों पर भाषा थोपना ठीक नहीं”
राज ठाकरे का कहना है कि बच्चों पर कोई भाषा जबरन नहीं थोपी जानी चाहिए। वह बड़े होकर खुद तय कर सकते हैं कि उन्हें कौन-सी भाषा सीखनी है। उन्होंने सवाल उठाया कि क्या ये सब IAS लॉबी के दबाव में हो रहा है? उन्होंने यह भी पूछा कि अगर महाराष्ट्र में हिंदी अनिवार्य की जा रही है, तो उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्य प्रदेश में तीसरी भाषा के रूप में मराठी क्यों नहीं पढ़ाई जाती?
“6वीं से शुरू करें, पहली से क्यों?”
राज ठाकरे ने सुझाव दिया कि अगर यह भाषा वैकल्पिक है, तो इसे छठवीं कक्षा से शुरू किया जाना चाहिए, न कि पहली से। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार बच्चों पर हिंदी थोपने का प्रयास कर रही है, जो उचित नहीं है।
क्या कहती है सरकार का आदेश?
महाराष्ट्र सरकार के मुताबिक, मराठी और अंग्रेजी माध्यम के सभी स्कूलों में अब पहली से पांचवी कक्षा तक के छात्रों को हिंदी भाषा पढ़ाई जाएगी। यदि कोई छात्र हिंदी की जगह दूसरी भाषा पढ़ना चाहता है, तो उसके लिए कम से कम 20 छात्रों का एक ग्रुप होना जरूरी है
महाराष्ट्र में हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में अनिवार्य करना एक बड़ा फैसला है, लेकिन इसके विरोध में कई आवाजें उठ रही हैं। राज ठाकरे जैसे नेता इसे भाषा थोपने का मामला बता रहे हैं और इसे राज्य की अस्मिता से जोड़ रहे हैं। अब देखना यह है कि क्या सरकार अपने इस फैसले पर कायम रहती है या विरोध को देखते हुए इसमें कोई बदलाव करती है।