
उत्तर प्रदेश के महाराजगंज जिले में एक हैरान कर देने वाली घटना सामने आई है, जहाँ एक युवक गूगल मैप्स की मदद से रास्ता खोजते हुए बड़ी दुर्घटना का शिकार होते-होते बच गया। यह मामला गोरखपुर-सोनौली राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित फरेन्दा थाना क्षेत्र के भइया फरेन्दा इलाके का है।
दरअसल, लखनऊ का रहने वाला एक युवक कार से नेपाल जा रहा था। वह गोरखपुर होते हुए रात करीब 1 बजे इस क्षेत्र से गुजर रहा था। रास्ता जानने के लिए वह गूगल मैप्स का सहारा ले रहा था। लेकिन गूगल मैप्स ने उसे एक अधूरे फ्लाईओवर की ओर मोड़ दिया। रात का समय था और चारों ओर अंधेरा पसरा हुआ था। युवक को अंदाजा नहीं था कि जिस रास्ते पर वह जा रहा है, वह अधूरा है।
जब युवक अपनी कार से फ्लाईओवर पर चढ़ा और आगे बढ़ा, तभी उसे एहसास हुआ कि सामने कोई रास्ता नहीं है। उसने फौरन ब्रेक लगाई, लेकिन तब तक देर हो चुकी थी। कार फिसलकर अधूरे पुल के किनारे पर जाकर अटक गई। गनीमत रही कि पुल के नीचे कीचड़ और कुछ पत्थर थे, जिससे कार वहीं फंस गई और नीचे नहीं गिरी। इस तरह युवक की जान बाल-बाल बच गई।
हादसे के तुरंत बाद आसपास के लोग घटनास्थल पर पहुंच गए। उन्होंने पुलिस को सूचना दी। मौके पर पहुंची पुलिस ने युवक को सुरक्षित बाहर निकाला और राहत की सांस ली गई।
स्थानीय लोगों ने इस हादसे को निर्माण एजेंसी और प्रशासन की घोर लापरवाही बताया है। उनका कहना है कि उस फ्लाईओवर पर न तो कोई बैरिकेडिंग लगी थी, न ही कोई चेतावनी बोर्ड या डायवर्जन का संकेत था। ऐसे में जो भी व्यक्ति पहली बार इस रास्ते पर आता है और गूगल मैप्स पर निर्भर करता है, वह सीधे अधूरे पुल पर चढ़ सकता है।
यह भी बताया जा रहा है कि इस स्थान पर पहले भी इसी तरह के हादसे हो चुके हैं। लोगों ने मांग की है कि जल्द से जल्द इस निर्माणाधीन पुल को सुरक्षित किया जाए और पर्याप्त चेतावनी बोर्ड व बैरिकेडिंग लगाई जाए, ताकि भविष्य में इस तरह के हादसे न हों।
इस पूरी घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर तेज़ी से वायरल हो रहा है। वीडियो में देखा जा सकता है कि कार पुल से लटकी हुई है और कुछ ही दूरी पर गहरी खाई जैसी स्थिति है। वीडियो देखकर ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि अगर कार थोड़ी और आगे बढ़ जाती, तो बड़ा हादसा हो सकता था।
यह घटना एक बार फिर यह सोचने पर मजबूर करती है कि टेक्नोलॉजी पर पूरी तरह निर्भर रहना खतरे से खाली नहीं है, खासकर जब बात रास्तों की हो और सामने निर्माणाधीन इलाका हो। इसके साथ ही यह सवाल भी खड़ा करती है कि निर्माण एजेंसियों की सुरक्षा व्यवस्था इतनी लचर क्यों है।