
उत्तर भारत में इन दिनों गर्मी का प्रकोप अपने चरम पर है। तापमान लगातार 40 से 45 डिग्री सेल्सियस के आसपास बना हुआ है और लू भी करीब 15 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चल रही है। जहां यह मौसम आम लोगों के लिए मुसीबत बना हुआ है, वहीं दूध देने वाले पशुओं के लिए यह और भी ज़्यादा खतरनाक साबित हो रहा है। पशुओं पर बढ़ती गर्मी का इतना बुरा असर हो रहा है कि दूध उत्पादन में भी तेज़ गिरावट देखी जा रही है।
पशु डॉक्टरों की चेतावनी: हो सकती है जानलेवा लापरवाही
गुरदासपुर पशुपालन विभाग के वरिष्ठ पशु चिकित्सक डॉ. गुरदेव सिंह के अनुसार, गर्मी का असर हर जीव-जंतु और वनस्पति पर होता है, लेकिन दुधारू पशु इससे ज्यादा प्रभावित होते हैं। अगर समय रहते इनका ध्यान न रखा गया, तो दूध कम होने के साथ-साथ पशु बीमार भी पड़ सकते हैं और हालत गंभीर होने पर मौत भी हो सकती है।
उन्होंने बताया कि पंजाब में ज्यादातर लोग अब विदेशी नस्ल की गायें पाल रहे हैं। ये गायें गर्मी को सहन नहीं कर पातीं, जबकि देसी गायें कुछ हद तक गर्मी झेल जाती हैं। मुर्रा नस्ल की भैंसों का शरीर काला होने के कारण उन्हें भी गर्मी ज्यादा लगती है और वे ज्यादातर समय पानी में रहना पसंद करती हैं।
हीट स्ट्रेस से स्वास्थ्य पर असर
गर्मी के कारण पशुओं को हीट स्ट्रेस (गर्मी से तनाव) हो जाता है, जिससे उनकी भूख कम हो जाती है, सांस लेने में परेशानी होती है और दूध देने की क्षमता घट जाती है। डॉ. गुरदेव ने कहा कि इन दिनों पशुओं को सुबह जल्दी चारा देना चाहिए ताकि तेज धूप में उनका शरीर अधिक गर्म न हो। जिन किसानों ने अपने पशुओं के लिए पंखों, कूलरों या छायादार जगहों की व्यवस्था की है, उनके यहां दूध उत्पादन में कोई खास गिरावट नहीं आई। लेकिन जिनके पास ऐसे प्रबंध नहीं हैं, वहां दूध में 2 से 4 किलो तक की कमी देखी गई है।
सावधानी और सुरक्षा उपाय
पशुपालन विभाग की ओर से पशुपालकों को जागरूक किया जा रहा है और जरूरी दवाइयां, टीके व कीड़े-मकौड़े मारने की दवाएं भी दी जा रही हैं। पशुपालकों को सलाह दी गई है कि:
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पशुओं को ठंडी छांव में रखें।
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शेड में पंखे या कूलर लगाएं।
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संभव हो तो छोटा तालाब या पानी की टंकी बनाएं।
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समय पर हरा चारा और ठंडा पानी उपलब्ध कराएं।
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बिजली की तारों की जांच करवाएं ताकि आग लगने की आशंका न हो।
डॉ. गुरदेव ने यह भी बताया कि गर्मियों में पशु शेड में आग लगने का खतरा भी रहता है क्योंकि वहां सूखा चारा, लकड़ियां और अन्य ज्वलनशील सामान पड़ा रहता है। एक छोटी सी चिंगारी भी बड़े हादसे का कारण बन सकती है।
गर्मी का असर केवल इंसानों तक सीमित नहीं है, बल्कि पशु भी इसकी चपेट में हैं। अगर पशुपालक समय रहते जरूरी सावधानियां नहीं बरतेंगे, तो दूध उत्पादन में गिरावट के साथ-साथ आर्थिक नुकसान और पशुओं की जान का खतरा भी बढ़ सकता है। गर्मी के इस मौसम में पशुओं की देखभाल पहले से कहीं ज्यादा ज़रूरी है।